सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

मई, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

Lost in translation

शूटिंग नहीं है आज कल खाली ही हूँ। अभी वहीं कर रहा हूँ जो अमूमन साल के 7-8  महीने   करना पड़ता है मुंबई में- ‘ काम ढुढ़ने का काम ’ । यह काम भी कुछ कम मज़ेदार नहीं है। सुबह उठे , एक दो फोन लगाए , किसिने मिलने को बुला लिया तो ठीक नहीं तो लैपटाप ऑन किया कोई फिल्म चला ली। काम की तलाश आज खत्म कल फिर फोन घुमाएंगे। एक दूसरा काम और भी है , शूटिंग खत्म होने के बाद प्रॉडक्शन से पैसे निकलवाने का काम। यह काम थोड़ा मुश्किल है। फोन घूमने के बाद सोचा कुछ लिखा ही जाए , बहुत कुछ है लिखने को , 4-5 आधी-अधूरी कहानियाँ , एक उपन्यास जिसे पिछले 4 सालों से पूरा करना चाहता हूँ , कुछ एक फिल्मों की स्क्रिप्ट भी हैं तो इंटरवल पर कबसे रुकी पड़ी हैं। पर पिछले काफी दिनों से से कलम के साथ रोमैन्स में मजा नहीं आ रहा है , जैसे कोई crisis है या writer’s block! मेरे लेखक और अभिनेता मित्र अरुण दादा कहते हैं “मन विरक्त सा हो गया है तेरा! वैसे जहां प्रेम है वही विरक्ति का वास भी होता है। प्रेम को भूलना आसान नहीं होता है , अतः घबराने की बात नहीं है , यह विरक्ति ज्यादा देर नहीं ठहरेगी , जल्दी ही वापसी होगी प्