रोज भागते भागते उसी झाड़ी तक जा रुक जाता.
पिछली कुछ सर्दियाँ और एक हसीं चेहरा
उन्ही झाड़ियों में कहीं गुम हो कर रह गए थे............
उन झाड़ियों को वो यूँ देखता मानो उसे यकीन था ...
कि गुजारी हुई सर्दियाँ और गुमशुदा सा वो चेहरा
अचानक हीं झाड़ियों से बाहर आ जायेंगे...
उसकी धड़कने जिंदा , ऑंखें खुली थीं..
कदम दर कदम बढ़ता चला जा रहा था...
पर उसका ज़ज्बात सो गया था...
मुर्दा सांसें, कुछ बीते पल औरकुछ सूखे
गुलाबों की माला पिरोये था,
लुटा कर, सब गवां कर आँखों में सपने
संजोये था...
शांत मगर उदासीन मुस्कान,
लिए एक निरीह हंसी, घोले थकान,
उस रोज थाने में रिपोर्ट लिखवाने गया था
आँखों से कोई उसके सपने चुरा ले गया था..
चोर नहीं पकड़ा गया,
पर जाते जाते अपनी पहचान बता गया..
लोग कहते है.. उसकी यादों में,
'तुम्हारे' फिंगर प्रिंट्स मिले हैं.....
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